पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल तक जाती हैं यहां की गाजर - राजस्थान उदय न्यूज़

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गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल तक जाती हैं यहां की गाजर

पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल तक जाती हैं यहां की गाजर

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यही नहीं किसानों व व्यापारियों की मानें तो चांग क्षेत्र की गाजर दिल्ली मंडी से होते हुए नेपाल, बांग्लादेश व पाकिस्तान तक जाती हैं। किसानों का कहना है कि चांग की गाजरों का रंग, आकार व गुणवत्ता काफी अच्छी मानी जाती है।

यहां होता है गाजर का उत्पादन
एक सवाल के जवाब में गाजर की खेती करने वाले किसान कहते हैं कि पहले तो सिर्फ चांग में ही गाजर बोई जाती थी, लेकिन फायदे का सौदा देख पिछले कुछ सालों से तो क्षेत्र के गांव बडेसरा, मित्ताथल, गुजरानी, रिवाड़ी खेड़ा, ढाणी हरसुख, खरक, बामला आदि गांवों में हर साल हजारों एकड़ भूमि पर गाजर का उत्पादन किया जाता है। शायद यही वजह है कि स्थानीय किसान गाजर को लाल सोना भी कहते हैं।

किसानों के मुताबिक अबकी बार गाजर का भाव भी अच्छा मिल रहा है। किसान नरेश मेहता, मेसर सैनी, रामनिवास, पहाड़ी, काला, देवेंद्र आदि ने बताया कि गाजर का भाव 30 से 35 रुपए मिलना शुरू हुआ था, अब भाव 22 रुपए प्रति किलो मिल रहा है। एक एकड़ में सवा सौ से डेढ़ सौ क्विंटल का उत्पादन हो रहा है। दो से ढाई लाख रुपए की बचत हो रही है। 
क्या है अगेती-पछेती बिजाई

किसान कहते हैं कि "पछेती बिजाई" का भाव दस से बारह रुपए भी मिल गया तो भी किसान को डेढ़ से दो लाख की बचत होगी। किसान नरेश ने बताया कि उसने दस एकड़ में 20 अगस्त को "अगेती गाजर" की बिजाई की थी और लगभग साढे तीन महीने में उसकी गाजर तैयार हो गई। गाजर के पत्तों (गजरा) को पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में भी प्रयोग किया जा रहा है।

भिवानी जिले के इन किसानों का कहना है कि अन्य फसलों की तुलना में गाजर पर पाले, बेमौसमी बरसात व अन्य बीमारियों का दूसरी फसलों के मुकाबले बहुत ही कम असर होता है जिस कारण किसानों को ज्यादा कीटनाशक व दवाइयों के छिड़काव की जरूरत नहीं होती।

मशीनों का हो रहा है उपयोग
चांग क्षेत्र के किसान गाजर के उत्पादन के लिए बिजाई से लेकर खुदाई व धुलाई में आधुनिक मशीनों का भी खूब उपयोग कर रहे हैं। गाजर के फायदे के कारण ही यहां के किसानों के पास आधुनिक कृषि यंत्र हैं।